श्री सत्यनारायण भगवान की कथा

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श्री सत्यनारायण भगवान की कथा एवं पूजा विधि हिन्दी और संस्कृत में भावार्थ सहित यहाँ उपलब्ध है।इस की सहायता से आप श्री सत्यनारायण भगवान की कथा घर पर करे और पुण्य के भागी बनेSome Features Of App:-★ श्री सत्यनारायण हिंदी में - Shri SatyaNarayan Katha ★ Completely Offline Content. No internet needed for reading★ Rich Reading Experience, Clean Content★ Less Than 5 MB.★ This app is in easy Hindi Language.★ Simple app.★ Professionally designed, user-friendly and intuitive interface.★ Easy To Use.★ No in App Purchases. Complete Free App .★ Good For Everyday Reading .★ No Unwanted Ads.सत्यनारायण भगवान की कथा लोक में प्रचलित है। हिन्दू धर्मावलम्बियों के बीच सबसे प्रतिष्ठित व्रत कथा के रूप में भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की सत्यनारायण व्रत कथा है। कुछ लोग मनौती पूरी होने पर, कुछ अन्य नियमित रूप से इस कथा का आयोजन करते हैं। सत्यनारायण व्रत कथा के दो भाग हैं, व्रत-पूजा एवं कथा। सत्यनारायण व्रतकथा स्कन्दपुराण के रेवाखण्ड से संकलित की गई है।सत्य को नारायण (विष्णु के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। इसका दूसरा अर्थ यह है कि संसार में एकमात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है।भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है, उनमें से उनका सत्यनारायण स्वरूप इस कथा में बताया गया है। इसके मूल पाठ में पाठान्तर से लगभग 170 श्लोक संस्कृत भाषा में उपलब्ध है जो पाँच अध्यायों में बँटे हुए हैं। इस कथा के दो प्रमुख विषय हैं- जिनमें एक है संकल्प को भूलना और दूसरा है प्रसाद का अपमान।व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य का पालन न करने पर किस प्रकार की समस्या आती है। इसलिए जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। ऐसा न करने पर भगवान न केवल नाराज होते हैं अपितु दण्ड स्वरूप सम्पत्ति और बन्धु बान्धवों के सुख से वंचित भी कर देते हैं। इस अर्थ में यह कथा लोक में सच्चाई की प्रतिष्ठा का लोकप्रिय और सर्वमान्य धार्मिक साहित्य हैं। प्रायः पूर्णमासी को इस कथा का परिवार में वाचन किया जाता है। अन्य पर्वों पर भी इस कथा को विधि विधान से करने का निर्देश दिया गया है।[1]इनकी पूजा में केले के पत्ते व फल के अतिरिक्त पंचामृत, पंचगव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा की आवश्यकता होती जिनसे भगवान की पूजा होती है। सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है जो भगवान को अत्यंत प्रिय है। इन्हें प्रसाद के रूप में फल, मिष्टान्न के अतिरिक्त आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर एक प्रसाद बनता है जिसे सत्तू ( पँजीरी ) कहा जाता है, उसका भी भोग लगता है।अनुक्रम1 विधि2 कथा 2.1 प्रथम अध्याय 2.2 दूसरा अध्याय 2.3 तीसरा अध्याय 2.4 चौथा अध्याय 2.5 पाँचवाँ अध्याय3 श्री सत्यनारायणजी की आरती4 श्री जगदीश जी की आरतीPlease take out a minute to Rate and Review our app.